पुष्टी-दस-भक्ति
पुष्टि-मार्ग मे श्री महाप्रभुजी ने दशो (10) प्रकार की भक्ति
अपने निज सेवको मे सिध्ध करवाई है अथवा दशो भक्ति को एक-एक भक्त को दान कियो । सो कहत है ::~
01. " श्रवण भक्ति " -- सो कथा वार्ता बिना वैष्णव पे रह्यो नही जाय ।
02. " कीर्तन भक्ति " -- सो सेवा मे वीना कीर्तन चले नही ।
03. " स्मरण भक्ति " -- सो थॉरो बहोत पंचाक्षर और अष्टाक्षर मंत्र के स्मरण विना वैष्णव महाप्रसाद लेय नही ।
04. " अर्चन भक्ति " -- सेवा मे प्रभु साक्षात बिराजे है ताको स्नान शृंगार करे है ।
05. " पादसेवन भक्ति " -- श्री ठाकोरजी अपने मस्तक पे पधराये है, तिनके वैष्णव चरण स्पर्श करते है ।
06. " वंदन भक्ति " -- अपने सेव्य स्वरूपन कु जगायवे की बिरिया, अनोसर
और पोढ़ायवे की बिरिया ऐसे वारंवार वंदन - नमन करते है ।
07. " दास्य भक्ति " -- सो पुष्टि जीव सदा दास भाव वारे है । पुष्टि जिवोन कु प्रभु अपने श्री अंग मे सु प्रकट किए है , सो आपकी सेवा अर्थ है । ताते पुष्टि भक्त सदा दास भाव वारे है ।
08. " सख्य भक्ति " --
सो श्री ठाकोरजी श्री महाप्रभुजी के सेवक ते सदा सख्य भाव राखे है ।
प्रभु जो सख्यता न राखे तो दैवी-जीव प्रभुन की सेवा न कर सके जैसे कोई बड़े राजा की ग़रीब जीव साक्षात सेवा नही कर सके है । तैसे प्रभु कोटि ब्रम्हांड के राजाधीराज इनकी साक्षात सेवा दोष वारे जीव ते कैसे होय ?
परंतु श्री महाप्रभुजी की अपार कृपा करुणा ते भूतल के देवी जिवो को प्रभुन की साक्षात सेवा को अधिकार प्राप्त भयो है , सो सेवा मे प्रभु दैवी-जीव ते सख्यता राखे है । जैसे प्रभुन कु जगावती बिरिया शैया में सू प्रभुन कु हाथ मे पधराय के सिंहासन - चौकी पे पधरावे है , शिंगार साक्षात स्वरूप को धरावे है । भोग धरती बिरिया प्रभुन कु अपने हाथो से पधरावे है । पोढ़ायवे
की बिरिया अपने हाथ मे प्रभुन कु पधराय के पोढ़ावे है । यह सब सख्य भाव के लक्षण है ।
09. " आत्म निवेदन भक्ति " --
सो श्री महाप्रभुजी साक्षात अपने श्री हस्तसु तुलसी जी दैवी-जिवो के हाथ मे दे के श्री ठाकोरजी के चरणारविन्द मे निवेदन करावे है ।
10. " प्रेमलक्षणा भक्ति " --
श्री महाप्रभुजी आपु प्रकट करिके अपने सेवकन को दीनी और आशीर्वाद दियो जो रहस्य लीला मे तुम्हारी भक्ति पूरण होय ।